पेट्रोल-पेट्रोल खेल रहे हैं संसद के गलियारों में
कीमत बढ़ने की खबर रोज़ छपती है अखबारों में
साइकिल खरीद लें बात चल रही है मेरे यारों में
दिख रहा है भविष्य देश का अब गहरे अंधियारों में
“मन” का चैन लुट गया “मोहन” अब तेरे दरबारों में
करुणा-ममता सता रहे हैं सत्ता के गलियारों में
रूपया बनता जा रहा पैसा डॉलर के व्यापारों में
शोषित जनता चीख रही है भाषण, कविता, नारों में
फिर भी न जाने तुम क्यों घूमते रहते शानदार कारों में

- अभिषेक "अतुल"

Tags: Petrol

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