समझना तो बहुत चाहता हूँ अपनी जिंदगी को
पर उस मक़ाम तक सोंच न पहुँच सकी
देखना तो दूर तक चाहूँ , कुछ फलांग से आगे निगांह नहीं पहुँचती
अपने अतीत में गर ख़ुशी ढूँढूं तो वहां तक याद नहीं जाती

सिर्फ तमन्नाओं में जकड़ा हूँ साधनों की राह नहीं मिलती
मिल जो बैठों किसी हमराज के संग ऐसी कोई शाम नहीं होती
रात ही रात है गहरी काली उन्जालों की कोई बारात नहीं होती
कभी तो कोई सन्नाटों को चीर दे एसी कोई आवाज़ नहीं आती

चलते चलते गर गिर भी जाऊ , तय है कोई न आयेगा
दिल में बुझते चरागों में न कोई शम्मा जलाएगा
राहों को तकते तकते बोझल होते बहुतों को देख
सोंचता हूँ क्या कभी बोझल राहों से क्या कोई अपना आएगा

अब तो उम्मीद करने की भी उम्मीद बाकी न रही ,अब तो उजाले में भी रौशनी नहीं मिलती है
रिश्तों में भी रिश्तेदारी कहाँ ,अब तो बदलते हालत की तरह सभी बदलते हैं !

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