एक ग्वाले के घर के आँगन में खूंटे से एक भैंस बंधी थी। वो पास के खूंटे से बंधी गाय को देख अचानक मुंह टेड़ा कर बोली तुम्हारी तो पूँछ काली है। गाय भी कुटिल मुस्कान के साथ बोली तू खुद कौनसी दूध रंगी है, सिर से लेकर पाँव तक कोयले जैसी काली है। भैंस ने मुंह सड़ा लिया।
बस यही हाल वर्त्तमान राजनीति का भी है। जिनका पूरा इतिहास ही ख़राब है वे दूसरों के इतिहास के ज्ञान पर सवाल उठा रहे है। जिन्होंने अन्ना तक के लिए उट पटांग शब्दों का प्रयोग किया उन्हें "शहजादे" शब्द से भी आपति होती है। जिन्होंने 84 में सिखों का सरेआम कत्लेआम किया, वो 2002 का रोना रोते नहीं थकते। मायावती को कोसने वाले आज खुद ऊंची ऊंची मूर्तियां बनवाने में लगे है। दिल्ली में "झाड़ू" लेकर घूमने वाले जो टोपी धारी लोग कल तक धर्म आधारित राजनीति करने वालों का विरोध करते थे आज वे ही मौलाना और तथाकथित साधुओ कि चौखट पर समर्थन की भीख मांगते नज़र आ रहे है। कमाल करते है। अभी तो यह सिर्फ शुरुआत है, 2014 आते आते तक तो राजनीति के और भी कई रंग बाहर आयेंगे।
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