प्रभात का सुप्रभात तो कब का हो गया,
अपनी तो फितरत है ऐसी,
निद्रा की आगोश में खोये, सुध बुध भुलाये,
दिन चढ़ने तक हमारी सुबह कैसी|

शुक्र है, मेरे जैसे भाई बंधुओं की,
कमी नहीं है देश में,
ब्रह्म मुहूर्त के दर्शन जिन्हें,
हुए न होंगे किसी भेष में|


सुबह आठ बजे: (nokia tune ringing)
(हे भगवान् कौन है सोने दो मुझे)
उधर से आई माँ की आवाज़
बेटा अब तक नहीं जगे??

झूठ: "जग गया माँ अभी दस मिनट हुए,
ब्रुश भी कर लिया अभी हूँ नहाने को तौलिया लिए हुए|"

"आवाज़ से तेरी लगता नहीं जगा हुआ है तू,
चल उठ गधे!! सूरज सर पर आया, अब तक बिस्तर पर पड़ा है तू|"

सच: हूऊ माँ तू कैसे सब जान जाती है?
क्या करू, आधी रात तक मुझे नींद कहाँ आती है |"

"प्यारेबेटे कभी अपना बाधा यन्त्र (लैपटॉप) बंद करके तो देख|
निंदिया रानी आएगी मीठे सपनो समेत|
चल जाग अभी बातें न बना, मुझे और भी काम हैं|
भूल गया क्या नौ बजे तेरे दफ्तर का भी पैगाम है|"

"ओ तेरी !! मैं भूल ही गया बस अभी उठ जाता हूँ,
माँ प्यारी माँ तेरे बिना तो मैं गधा, उल्लू या किसी का प्यादा हूँ |"

n i wake up बड़ी मुश्किल से सारे आलस्य का त्याग करते हुए
thanking mom all over again n अपनी stupidity का एहसास करते हुए|



thats my रोज़ की कहानी n i hope hum me se kaiyon ki...

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