पाना नहीं मुझको तुम्हें बस कल्पनाओं में प्रिये
जीना नहीं मुझको तुम्हें बस भावनाओं में प्रिये
प्रतिबिम्ब ही केवल नहीं पर्याप्त है मेरे लिए
रखना मुझे है सर्वदा तुमको भुजाओं में प्रिये

वीजन न मैं वह उम्र भर जो चाँद को तकता रहे
है प्रेम मेरा वासनामय, जग कहे, कहता रहे

मुख पर तुम्हारे, वेद की सारी ऋचाएँ संघनित
द्वी-चक्षुओं में अर्घ की सारी विधाएँ उल्लिखित
घन-कुन्तलों में वास करतीं स्वच्छ समिधाएँ सभी
हैं निहित वाणी में तुम्हारे प्रार्थनाएँ सकल ही

हिय-गात का अनुपम समन्वय यज्ञ-शाला सा लगे
है प्रेम मेरा वासनामय, जग कहे, कहता रहे

निर्माण करते जीव का, तन-प्राण के अनुबंध ही
होता पृथक अस्तित्व कोई भी नहीं इनका कभी
समवेत सुख- दुःख- भोग दोनों का रहा है सर्वदा
है सूक्ष्म मिलकर स्थूल से करता सृजन सौंदर्य का

बस कामना, मुझमें तुम्हारा पूर्ण नित पलता रहे
है प्रेम मेरा वासनामय, जग कहे, कहता रहे

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