इंसान है वो भी, आखिर थक तो जाती है
रोने की चाह है पर मुस्कुराती जाती है
गुस्सा करना चाहती है , चिल्लाना भी चाहती है
न जाने क्यूँ फिर बस मन मसोस के रह जाती है

डर नहीं है , खौफ नहीं है , बस थोड़ी परवाह है
थोड़ी ही सही पर सबके लिए दिल में एक जगह है
इच्छाएं जताती है , सपने सजाती है , अरमान जगाती है
पर मजबूरियों के बोझ के तले बस दबा दी जाती है

चुन लिया गर रास्ता कोई अलग, सवालों की बरसात होती है
गलती नहीं जब कुछ भी, नज़रें बेवजह शर्मसार होती हैं
नफरत हो भले ही कितनी, दिखा नहीं पाती है
बात ना करे कभी पर आँखों से मुस्कुरा के चली जाती है

टूटती है, बिखरती है, संवर भी खुद ही जाती है
चाहकर भी किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराती है
शिकायत हैं उसे पर किसी और से नहीं है
ये तो खुद उसका ही दिल है जो गुनेहगार लगे है

बेबस है तो बहुत , पर नज़र नहीं आती है
नहीं है हिम्मत ज़रा भी बाकी , जाने कैसे आगे बढ़ी चली जाती है ..

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