गरिमा कॉलिंग.......
मेरे सैमसंग के फोन पर यह लिखा हुआ पूरे एक हफ्ते बाद आ रहा था।ये शब्द जब भी मेरे फोन पर फ़्लैश होते थे मेरी ख़ुशी का कोई पार नहीं रहता था।किसी अनावृष्टि से पीड़ित किसान को अपने खेत में मूसलाधार बारिश हो जाने से शायद जितनी ख़ुशी मिलती होगी ठीक उसी तरह की ख़ुशी मुझे भी मिल रही थी ।मेरे होठ किनारे कानो को छूने की चेष्टा में लग गए थे।मेरी छोटी आँखें इस बड़ी मुस्कान में मानो अपना अस्तित्व खोती नजर आ रही थीं।मैंने अविलम्ब हरे रंग से बने फोन की आकृति को स्लाइड किया ।
"हेल्लो.."
"हाय कुन्दन ,कैसे हो..?"
"मैं तो बिलकुल मस्त हूँ ।तुम अपनी बताओ...."
"मैं भी बिलकुल ठीक हूँ।"
"यार सॉरी मैं आजकल रोजाना तुम्हें कॉल नहीं कर पाता।"
"अरे..! कोई बात नहीं यार ,चलता है..."
गरिमा को मैंने पहली बार ग्यारहवीं कक्षा में देखा था।देखने में तो किसी फ़िल्मी अभिनेत्री से कम नहीं थी।भगवान् ने उसके नाक-नक्श मानो किसी दक्ष और अनुभवी कारीगर से गढ़वाये थे।चेहरे की आभा भी आफताब से उधार मांग कर उसे दी गयी थी ,ऐसा प्रतीत होता था।मैंने उसे स्कूल के बरामदे में देखा था और बस देखते ही रह गया.....।मेरी नजरें किसी कुशल चित्रकार की भाँति उस पर टिक गयीं ।जिस तरह चित्रकार किसी भी मनोरम दृश्य को देखकर उसकी सुंदरता की हरेक सूक्ष्म बारीकी को अपने चित्रपटल पर उलीच देता है,ठीक उसी तरह उसकी खूबसूरती का कण-कण मेरे मानसपटल को आच्छादित कर रहा था।मैं पहली ही दफा उसे देखने के बाद उसका आसक्त हो गया था।अब मेरे दिमाग में उसके अलावा कुछ और नहीं था। मैं बस इसी उधेड़बुन में लग गया कि किस तरह इस लड़की से मित्रता की जाए किस तरह इस वसुंधरा की बेमेल सुंदरता से कुछ बातें की जाए।
स्कूल ख़त्म होने के बाद मैं उस दिन घर गया।मेरे दिमाग में अब बॉलीवुड के गाने बजने लगे थे।मुझे अब घर में कोई कुछ कह रहा था तो ना तो वो सुनाई दे रहा था ना ही अब कुछ समझ में आ रहा था।अभी तक मैंने गरिमा से बात तक भी नहीं की थी और मेरा ये हाल था।मैं अभी केवल 16 साल का था और इस उम्र में ऐसा बहुतों के साथ होता है लेकिन उस समय मैं अपने आप को सबसे अलग मान रहा था ।फिल्मों में देखा गया दृश्य मुझे लगा आज मुझपे फिल्माया जा रहा है।वो किसी फ़िल्म की अभिनेत्री और मैं अपने आप को हीरो समझने लग गया था।थोड़ी देर तक तो मेरे दिमाग ने ये फ़िल्मी ड्रामा किया और अपने आप को किसी भी हीरो से कम समझना कतई उचित नहीं समझा ,लेकिन तभी दिमाग में एक और ख्याल अंकुरित हुआ।अंकुरित क्या हुआ मानो दूसरा ख्याल पूरी तरह से समृद्ध होकर पहले ख्याल पर हावी हो गया और मैं स्वप्नभंग का शिकार हो गया।हाँ...जागते हुए देखा तो क्या हुआ? था तो वो सपना ही ना.....।मेरी तंद्रा टूटी और मेरे मन ने मुझसे सवाल किया"अरे अपने आप को कभी आईने में देखा है कि नहीं..... !क्या तुम उस हेरोइन के हीरो बनने के लायक हो....?"
मैं अपने मन के प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाया और मेरा मन जो कि अभी तक सातवें आसमान पर था अब जमीनी हकीकत से रूबरू हो चुका था।मैं एक दुबला-पतला श्यामल वर्ण अत्यंत ही साधारण मुख-मंडल का लड़का.....।ऐसे में भला कौन लड़की मुझे पसंद करती।फिर मेरे अंदर से एक आवाज आई कुंदन तू थोडा गोरा होता तो आज बात बन जाती।लेकिन तभी दूसरा मन जो कि अभी-अभी मुझे सातवें आसमान का विचरण करा लाया था,ने एक और बार मेरी हिम्मत बढ़ाई और पहले मन को जवाब दिया-"अरे अच्छा नहीं दिखता तो क्या हुआ अभी भी देखो क्लास की सारी लडकियां नोट्स मांगने के बहाने इससे बातें करने आती हैं और दोस्ती रखना चाहती हैं ।कई लड़के जिस लड़की पे मरते हैं वो केवल कुंदन से बात करती है।अभी-अभी जो कुंदन बिलकुल शांत हो गया था उसके अंदर का हीरो एक बार फिर से जागने लगा।अब फिर से सकारात्मक विचार वाले उसके मन ने जय हासिल कर ली थी।मैंने एक तेज़ निःश्वास खींचा और मन ही मन ये निश्चय कर लिया कि कल गरिमा से बात की जायेगी।निश्चय तो मैंने कर लिया था पर आज की शाम और रात बितानी मेरे लिए काफी कठिन हो गया था।कल सुबह की प्रतीक्षा में मैं विह्वल हुआ जा रहा था।रात में काफी देर तक मैं खुद से बातें करता रहा और इस उधेड़बुन में मुझे काफी देर तक नींद नहीं आई।
खैर किसी तरह रात बीती और भोर का आगमन हुआ।मैं आज कुछ विशेष तरीके से स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहा था।मेरा मन गरिमा के ख्यालों में उत्फुल्ल था ।और आज का दिन मेरे लिए सच में ख़ास है ये बात मेरे चेहरे को देखकर कोई भी बता सकता था।किसी भी काम को मैं अनायास ही जल्दीबाजी में कर रहा था। मेरी देह आज एक अलग ही परिभाषा कह रही थी........।जल्दी-जल्दी तैयार होकर उस दिन मैं एक घंटे पहले स्कूल पहुँच गया।मेरी पलकें स्कूल के गेट की ओर टकटकी लगाए हुई थी। काफी समय बीत गया लेकिन गरिमा नहीं आई थी।मुझे लगने लगा था कि अब वो नहीं आएगी और मैं ये भूल गया कि क्लास शुरू होने में अभी काफी समय शेष है और इतना पहले शायद ही कोई बेवकूफ होगा जो आएगा।खैर हरेक मिनट एक पहाड़ की तरह मैं बिताता रहा और अंततः गेट से गरिमा का पदार्पण हुआ।लाल रंग के सूट में वो आज भी उतनी ही सुन्दर लग रही थी जितनी कि कल दिखी थी।ना तो गरिमा मुझे मारती ,ना गाली देती यहाँ तक कि वो तो मुझे जानती तक भी नहीं थी फिर भी ना जाने क्यों उसे देखते ही मेरी धड़कनें अपने चरम रफ़्तार से धड़कने लगीं।ह्रदय मानो सीने से बाहर आने को आतुर हो उठा था।मेरे हाथ-पैर तक कांपने लगे।मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था उसे देखते ही ऐसा क्यों होने लगा था।अभी तो उससे बात करना बाकी है अगर बात करने गया तब क्या होगा...!मैं उस दिन दिन भर सोचता रहा कि अब गरिमा को रोककर उससे बात करूँ।पर पूरा दिन निकल गया और मैं उसे टोकने का साहस नहीं बटोर पाया।अभी तक मैंने अपने किसी मित्र से भी यह बात साझा नहीं की थी कि मुझे गरिमा पसंद है और मैं उससे दोस्ती करना चाहता हूँ।हालाँकि मैं क्लास में बार-बार गरिमा को देख रहा था और शायद उसने यह बात भाँप ली थी।फिर भी कुछ और दिन बीत गए। ना मैंने कुछ कहा और ना उधर से कोई प्रतिक्रया आई।कुछ दिनों के बाद क्लास में नोट्स जमा करना था।गरिमा को शायद मेरे बारे में पता चल चुका था कि मेरा नोट्स क्लास में सबसे अच्छा रहता है।एक दिन जब क्लास ख़त्म हुई और मैं अकेले क्लास के बाहर बरामदे में टहल रहा था तो गरिमा मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी और मुस्काते हुए कहा,
"हाय कुंदन...!"
गरिमा मुझसे बात करने आई थी ये सोचकर मुझे जहां काफी खुश होना चाहिए था वहीं मैं नर्वस हो गया एक बार फिर से मेरी धड़कने राजधानी एक्सप्रेस की गति से दौड़ने लग गयी थीं।और मैं बस गरिमा को देखे जा रहा था कि तभी गरिमा ने फिर से कहा," हेल्लो...,"
मैं अब थोडा सा संभला और मैंने लड़खड़ाती जबान से जवाब दिया,
"हा....य..य.."
फिर उसने सीधा प्रश्न किय,"जो नोट्स जमा करने हैं तुमने बना लिया है क्या?"
"हाँ..."
"मुझे चाहिए यार ,दोगे क्या..?"
"हाँ क्लास में रखे हुए हैं चलो दे देता हूँ।"
मैंने क्लास से नोट्स लाकर उसे दे दिया।उस समय मेरे दिमाग ने काम करना बिलकुल ही बंद कर दिया था।नोट्स लेकर वो चली गयी और मैं क्लास में आकर अपनी जगह पर बैठकर गरिमा के बारे में सोचने लगा ।अब मैं ये सोच रहा था कि मुझे नोट्स इतनी आसानी से नहीं देना चाहिए था उससे थोड़ी और बात करनी चाहिए थी फिर मैंने अपने आप से कहा हाय तो ठीक से बोल नहीं पा रहा था और बात क्या करता।अपने आप से मेरा वार्तालाप चल ही रहा था कि अचानक मुझे याद आया कि अभिषेक ने मुझसे नोट्स मांगे थे।लेकिन तुरंत ही अभिषेक मेरे विचारों से अनुपस्थित हो गया और गरिमा से की गयी बातों में डूबकर मैं उस वार्तालाप का पर्यवेक्षण करने लगा।गरिमा ने जो एक- दो पंक्तियाँ मुझसे कहीं थीं वो मेरे दिमाग में किसी सुरीले ग़ज़ल की तरह प्ले हो रही थीं।उन पंक्तियों ने मानो मेरे दिमाग के हार्डडिस्क को पूरी तरह फुल कर दिया था।
गरिमा की सोच में डूबे हुए ही कब दिन ढल गया और शाम अपनी बाहें फैलाये आ गयी पता नहीं चला।शाम को अभिषेक मुझसे मिला और उसने कहा,"आज नोट्स दे देना।"
"सॉरी यार! नोट्स तो आज गरिमा ले गयी है।"
"ओ हो.......! तो मिस गरिमा आपके नोट्स ले जाने लगीं ।हाँ भाई,उन्हें ही दो नोट्स हम कौन हैं...?"
"यार ऐसी बात नहीं है।"
"मुझे पता है क्या बात है।" अभिषेक ने अपने चेहरे पर कुटिलता भरी मुस्कान लाते हुए कहा।फिर हमदोनों के बीच दूसरी बातें होने लगीं और अन्धेरा होने पर दोनों अपने-अपने घर चले गए।
कुछ दिनों तक नोट्स के लेन-देन से और बातचीत होने से मेरे और गरिमा के बीच अच्छी दोस्ती हो गयी थी।अब धीरे-धीरे वो मेरी रूचि-अरुचि के बारे में जानने लगी थी और मैं भी उसकी पसंद-नापसंद से थोड़ा बहुत अवगत हो गया था।हमदोनो के पास अब एक-दूसरे का मोबाइल नंबर था और जब भी हम अलग होते तो फोन हमारे बीच संपर्क का माध्यम बना रहता था।हम फोन पर ज्यादा बातें तो नहीं करते थे लेकिन छुट्टी के दिन अगर मैं हरेक घंटे गरिमा को कॉल नहीं करता तो तुरंत ही उधर से उसका फोन आ जाता था।कॉलेज के बाकी स्टूडेंट्स ने अब हमदोनों के बारे में बातें शुरू कर दी थीं।हालाँकि मैं इन बातों को सुनकर गौरवान्वित ही महसूस करता था क्योंकि कॉलेज की सबसे सुन्दर लड़की ने एक तरह से बाकी सारे लड़कों को छोड़ केवल मुझे अपना अच्छा दोस्त बनाया था।फिर भी मैं इस बात को लेकर चिंतित था कि लोग तो दोस्ती से ज्यादा की बातें कर रहे थे जैसा हमारे बीच बिलकुल नहीं था।हमदोनो बस अच्छे दोस्त थे।इसलिए मैंने ये सारी बातें गरिमा को बतायीं ।गरिमा थोड़ी स्वछन्द विचारों की स्वामिनी थी।उसने मुझे साफ़-साफ़ कह दिया-
"मुझे इन बातों से कोई लेना-देना नहीं है।वी नो दैट वी आर ओनली फ्रेंड्स।है ना.....!"
"ह.. हाँ..।"
मैंने थोड़ा रुकते हुए जवाब दिया था।
" कोई बात नहीं तुम फोन नहीं कर पाये तो,लो मैंने तो कर लिया ना......?"
मैं थोड़ा सा बुरा अनुभव करने लगा क्योंकि मैंने काफी लंबे समय समय से गरिमा से कोई संपर्क नहीं किया था।चूँकि उसने ही काफी दिन बाद फोन किया था इसलिए मैंने सोचा अब बात मैं ही आगे बढ़ाता हूँ और यही सोचते हुए मैंने गरिमा से निहायत ही सामान्य प्रश्न पूछा-
"हाँ.....।अच्छा और बताओ गरिमा क्या चल रहा है आजकल?"
इस प्रश्न से ज्यादा उस समय मेरा मस्तिष्क कुछ और सोचने में विफल था।
"मेरा तो ग्रेजुएशन हो गया और मैंने दो-तीन यूनिवर्सिटीज में पी.जी. के लिए इंट्रान्स भी दिया है।"
"ओह इट्स गुड....! मैं तो फिर से ग्रेजुएशन कर रहा हूँ।इस साल मेरा फर्स्ट इयर कम्पलीट हुआ ।नंबर अच्छे आये हैं अब देखो आगे क्या होता है.....।"
"अच्छा है ....।अच्छा कुंदन मैंने तुम्हें एक बात बताने के लिए फ़ोन किया था।काफी जरुरी बात है....।"
मेरे और गरिमा दोनों के बारहवीं में बहुत अच्छे अंक आये थे।हमने पटना यूनिवर्सिटी के सारे महाविद्यालयों में स्नातक में नामांकन के लिए आवेदन दे दिया था।गरिमा ने पटना विमेंस कॉलेज में भी आवेदन दिया था लेकिन मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि उसका नामांकन विमेंस कॉलेज में ना हो पाये।हालाँकि मैं उसके बारे में बुरा नहीं सोच रहा था।उसी समय भगवान् से मेरी दूसरी विनती यह रहती थी कि हमदोनों का नामांकन एक साथ पटना साइंस कॉलेज में हो जाए।भगवान् को भी शायद मुझसे स्नेह था उन्होंने मेरी पहली प्रार्थना तो अस्वीकार कर दी थी और गरिमा का नाम विमेंस कॉलेज की पहली सूची में ही आ गया था।लेकिन वहीँ उसका नाम साइंस कॉलेज की भी पहली सूची में था।मेरा नाम भी साइंस कॉलेज में एडमिशन की पहली लिस्ट में अंकित था।भगवान् ने मेरी दूसरी प्रार्थना तो सुन ली थी लेकिन अब आगे का सारा दारोमदार गरिमा और उसके अभिभावकों पर था।मैं इस बात से थोड़ा व्यथित था कि कोई भी अभिभावक अपनी लड़की की बेहतरी के लिए उसे विमेंस कॉलेज ही भेजना चाहेगा और इस तरह से मैं गरिमा से दूर हो जाऊंगा।मैंने गरिमा से अनुनय किया था कि वो अपने अभिभावकों के सामने ये पक्ष रखे कि साइंस कॉलेज विमेंस कॉलेज से बेहतर है।गरिमा भी मेरे साथ ही पढ़ना चाहती थी और उसने वही किया जो मैंने कहा था।गरिमा के चाचा भागलपुर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे और उन्होंने भी गरिमा के पापा को यही सुझाव दिया को वो उसका दाखिला पटना साइंस कॉलेज में ही करवा दें।फिर क्या था....,गरिमा और मेरा दोनों का एडमिशन पटना साइंस कॉलेज में हो गया।साइंस कॉलेज में पढ़ना किसी भी विद्यार्थी के लिए अत्यंत ही शान की बात थी।इसलिए मेरे और गरिमा की ख़ुशी का कोई पार नहीं था।हमदोनो की ख़ुशी तो और दोगुनी हो गयी थी क्योंकि हम पटना के सबसे अच्छे कॉलेज में एक-साथ पढ़ने लगे थे।
मैं और गरिमा अब दोनों पटना में ही रहने लगे थे और वहीँ रहकर पढ़ाई करने लग गए थे।हम अच्छे दोस्त तो पहले से ही थे लेकिन यहाँ हमारे बीज नजदीकी बढ़ने लगी थी और हम एक-दूसरे से मिलने में ज्यादा स्वतंत्रता भी महसूस करते थे।अब हमारे बीच रिश्ता काफी प्रगाढ़ होने लगा था।हमदोनों को एक दूसरे की सोहबत काफी अच्छी लगने लगी थी।अब हमदोनो अक्सर अपनी शाम बिताने के लिए गांधी मैदान जाने लगे थे।एक तो गांधी मैदान हमारे कॉलेज और आवास से ज्यादा दूर नहीं था और दूसरा ये कि वहीँ हमें कुछ समय बिलकुल ही अकेले बिताने का मौक़ा मिलने लगा था।यूँ तो मैंने गरिमा का हाथ कई बार पकड़ा था ।लेकिन एक शाम जब मैं गांधी मैदान में बैठा था और बातें करते-करते जब मैंने उसका हाथ पकड़ा था तो एक अलग ही अनुभूति हुई थी।शायद अब हम अच्छे दोस्त से कुछ ज्यादा हो गए थे।अब हमे अलग रहना बहुत बुरा लगने लगा था।कॉलेज में हम साथ में बैठते थे।लेकिन छात्रावास में हम एक साथ नहीं रह सकते थे।उस समय हम साथ होते तो नहीं थे लेकिन कोई अदृश्य डोर हमदोनो को बांधे रखती थी।हमारे बीच शायद कोई आकर्षण बल कार्यरत था जो हमें अलग होने नहीं देता था।जब किसी से स्नेह या प्यार बढ़ता है तो उसका स्थायित्व ढूँढने की प्रवृति भी बढ़ जाती है।और यही उस समय मेरे साथ हो रहा था।मेरे अंदर जलन की मांसपेशी सक्रीय हो गयी थी।जब भी मैं किसी दूसरे लड़के से गरिमा को बातें करते देखता था तो मैं काफी असहज हो जाता था।ये हाल केवल मेरा ही नहीं था।कहते हैं ना हरेक क्रिया के विपरीत बराबर प्रतिक्रया होती है।तो उसी के परिणाम स्वरुप गरिमा मुझे कई बार दूसरी लड़कियों से बातें करते देख कर डाँट चुकी थी।हममे से किसी ने भी एक-दूसरे को आज तक "आई लव यू " नहीं कहा था।लेकिन,हमदोनो के बीच एक अनकहे प्यार का बीज प्रस्फुटित हो चुका था।उससे कोंपल निकलने लगे थे और हमारे बीच होने वाली प्यार भरी बातों की बारिश में हमारे प्रेम का पौधा दिनानुदिन सिंचित होने लगा था।
"हाँ.... गरिमा बताओ क्या बात बताना चाहती हो....?"
"हाँ बताउंगी ।पहले ये बताओ तुम्हारी नौकरी कैसी चल रही है...?"
मेरा मन मानो खुशियों का गुलदस्ता हो गया था और मेरे मन का कोना-कोना उस फूल की सुगंध से मुग्ध हो गया था।दरअसल बात ही कुछ ऐसी थी।पहले गरिमा ने कहा था कि अपने बारे में कुछ बताने वाली है लेकिन अब उसकी जिज्ञासा मुझे लेकर हो रही थी।मैं तो ख़ुशी से झूम उठा था पहले सोचा कि बहुत कुछ बताऊँ अपने बारे में फिर लगा नहीं ये क्या कहना चाह रही है पहले यही जान लिया जाय।
"यार मेरी जिंदगी तो एक ढर्रे पर चल रही है।सुबह होते ही जल्दीबाजी में किसी पहले से फीड किये प्रोग्राम की तरह मैं ऑफिस के लिए तैयार होता हूँ ।दिनभर ऑफिस में काम करने के बाद जब थोड़ा बहुत

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