थोड़ा धीरे बोलो अभी देश मेरा सो रहा है 
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वो चिल्लाई वो रोई 
लथपथ खून में की पथ पे कोई सुनेगा 
न कोई रुका न किसी ने सुना 
वो फिर चीखी जोर से ,पुरजोर से 
रात भी रो पड़ी ,कहती काश मैं न होती 
साँसों को गिनते , आखिर वो चली गयी 
पूछता हूँ ये आखिर कैसा दिवस आज ये देश मना रहा है 
जवाब आया 
थोड़ा धीरे बोलो अभी देश मेरा ६७ सालों से सो रहा है
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