'भाईसाहब! थोडा धयान रखना बच्ची का '- ड्राइवर को कहके गाड़ी में वापिस बैठ गए ज्योति और उसके पापा । पांच मिनट में बस चल भी पड़ी| खिड़की को बंद करते हुए मैंने इधरउधर का जायजा लेकर खुद को आश्वस्त कर लिया । ऐसे कभी घर गयी थी अकेले । दुकान से टॉफ़ी खरीदने से लेकर कॉलेज में एडमिशन कराए तक पापा का हाथ कभी छूटता नही । पिछली सीट वाले छिछोरे आशिक़ी २ के गानो का मधुर संगीत बजाये हुए थे । जब आप ऐसे लोकल बस में सफ़र करेंगे तो आपराधिक तत्व मिल ही जायेंगे कहीं न कहीं । मनुष्यों कि प्रवर्ति रही है घूरने कि कभी से । ऊपर से रात के 8 बजे । बहुत देर तक इग्नोर भी मारा अंकल जी को , सोचा सायद दो मिनट बाद भूख प्यास मिट जायेगी इसके अंदर के कीड़ों की| रेवाड़ी से मेरे घर तक एक घंटा लगता है और तब ये पांच घण्टे जितना लग रहा था । हदें तो तब पार हो गयीं जब वो महोदय ड्राईवर कि सीट से उठकर मेरे बगल वाली सीट तक आ पंहुचा । आखिर कब तक उसको गीद्ध जेसी नज़रों से खुद को नोचने देती , फिर लगा के इतने सरे प्रोटेस्ट्स में जaनe का फायदा क्या जब म खुद के लिए न बोल सकूँ } सरे नारे गुंझ रहे थे दिम्माग में । पिताजी से बात करके हिमत वेसे ही बढ़ चुकी थी|- एक्सक्यूज़मे- हांजी बेटा - पास में खड़े अंकल|- इनको इधर आने दो ।' क....क.. क.. कौन मैं ?'- हाँ! आप ही , पिछले एक घंटे से घूरे जा रहें हैं कभी इधर से कभी उधरसे परेसान हो गए होंगे मेरी साइड में ही आके बैठ जाओ फिर अछे से घूर सकोगे ।मैंने डरे तड़क से बोला' and then comes the fatt ke hath me aane wala moment -म...म....म.. मैं क्यूँ देखूंगा ? '-नहीं मेरा बाप देखेगा घूर के वो ऐसे ।' मैं क्यूँ देखूंगा ?- थोड़े मरदाना अंदाज़ में बोला जैसे उससे शरीफ बंदा तोह खुद ने बनाया ही न हो ।पूरी बस में सन्नाटा था और वो म्यूजिक भी बंद हो चूका था जो फ्री में सुन्याया जा रहा था ।- नहीं, क्या पता इधर कोई आपकी ही कोई बहिन नाच रही हो उसकी को घूररहे होंगे फिर ।'अकेली लड़की है इसलिए मई कुछ बोल नही रहा'- न न बोलिये न मैं भी तोह तू कैसाशेर है ? और आगे मेरे पापा मिल जायेंगे फिर तो अकेली भी नही रहूंगी तब देख लियो अछे से अगर इतनी ही हिम्मत हैना तो इस बार घूर के दिखा दे बस|मुह न तोड़ के हाथ में दिया तो ।फिर क्या बंदा टस से मस नही हुआ , एक दम नीचे गर्दन ।और मैं थी के उसे घूरे जा रही थी क एक बार अब देख के तो दिखाए सारी बस इंतज़ार में थी के कब मेरा स्टेशन आये कब मैं उतरु और कब वो मेरी शकल देखे ।दो चार अंकल मुझे ही सांत्वना दे रहे थे ,इतने में कंडक्टेर -'' अंजानो से ऐसे बात नही करते , इतनी रात ऊपर से अकेली लड़की "- न्यूज़ पेपर पढ़ लिया करो , लगा लेते हैं अनपढ़ो को ।किसी को ज्यादा देर तक घूरना इल्लीगल है, और अंजानो को घूरते भी नही हैं तो ।कहते हुए म उतर गयी थी, पापा सामने खड़े थे ।वो बंदा वही सून्न खड़ा रह गया भरम जो टूट गया था उसका के लड़कियों को सिर्फ सहन करना ही सिखाया गया है ।और ये थे मेरा बेखोफ आज़ादी से पहला एन्कोउन्टर |
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