Jab पितामाह भीष्म बाण शैया पर लेटे थे तब उनके प्राण त्यागने से पूर्व पांडव उनके अंतिम दर्शन को आये। उन्होंने धर्मराज युधिष्ठिर को राज धर्म का पाठ पढ़ाते हुए कहा था कि "हे युधिष्ठिर तुम धर्म के प्रतीक हो, राजा के लिए राष्ट्र से बड़ा कोई नहीं होता ना पिता, ना पुत्र, ना ही कोई प्रतिज्ञा। राष्ट्र हित में ही राजा का हित है। जब तुम्हारे लिए कोई और हित राष्ट्र हित से ऊपर हो जाये तो समझ लेना कि तुम देश द्रोह के मार्ग पर चल रहे। वह राजा राष्ट्र के लिए कभी शुभ नहीं होता जो अपने राष्ट्र कि दुर्गति के लिए अतीत को दोष दे क्योंकि अतीत तो यूँ भी वर्त्तमान कि कसोटी पर खरा नहीं उतर सकता क्योंकि अतीत यदि सुखमय होता तो परिवर्तन ही ना होता। इसलिए हे कुंती पुत्र युधिष्ठिर जाओ और अत्तीत को भूल नए राष्ट्र का निर्माण करो।"

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