मुझे कभी Archies वाले Cards/Gifts का funda समझ नहीं आता है। चाहे Birthday हो, Valentines Day हो, anniversary हो या farewell ही हो, आख़िर ये Archies cards क्यूँ?

मेरे एक दोस्त की farewell पार्टी थी। Party के बाद मैं उसे see off करने दिल्ली रेलवे स्टेशन गया हुआ था। स्टेशन drop करने के बाद Connaught Place में घूम ही रहा था कि अचानक से बारिश शुरू हो गयी। अब दिल्ली तो दिल्ली है; यहाँ सर ढकने के लिए छत मिलना उतना ही आसान है जितना यहाँ से Graduation करने के बाद गर्लफ्रेंड बनाना है, और उतना ही tricky है जितना उस गर्लफ्रेंड का बस आपके लिए committed होना है। मुझे बारिश से बचने के लिए राजीव चौक मेट्रो का छत मिल तो गया, पर Inflation की तरह बढ़ते Delhi population के बीच दबकर मैं आलू से potato chips बन चूका था। अगर दिल्ली में रहने के बाद भी आपके पास मेट्रो कार्ड नहीं हैं, तब आप उन अभागे students की तरह है, जो पूरी ज़िन्दगी कभी हॉस्टल में नहीं रहते, पर उन्हें लगता है कि Graduation complete हो गया है।

मेरे पास मेट्रो कार्ड भी था और मैं हॉस्टल में रह भी चूका था। इसलिए कम से कम अपने definition के मुताबिक मैं अभागा नहीं था। बारिश के कारण भीड़ और पानी मेट्रो स्टेशन पर बिना रोक टोक के बहते आ रहे थें। भीड़ में कुचल जाने से बचने के लिए अगली किसी भी मेट्रो train में चढ़ जाना मेरे IQ के अनुसार "Strategy of the Day " था। शनिवार को ऐसे भी आपके पास इतना समय रहता है कि एक दो घंटे शहंशाह की तरह कहीं उड़ा दिए जाएँ तब भी आपके time account में बहुत अंतर नहीं आता। मैं लड़ झगड़ कर किसी तरह अगली मेट्रो पर चढ़ गया। मंडी हाउस पर भीड़ कम दिखी। मंडी हाउस का नाम cultural और theatrical reference में मैंने खूब सुना था। कम भीड़ देखकर मैंने एक-दो घंटे इस Cultural Spot को dedicate करने का सोच लिया।

मेट्रो स्टेशन के बाहर अभी भी भारी बारिश हो रही थी। जिनके पास raincoat या छतरी थी, वो Honda City पर बैठकर साईकिल सवारों को shrewd smile देने वाले लोगों की तरह निकल गयें और जिनके पास कुछ नहीं था, वो मिल्खा सिंह की तरह random direction में भाग लियें। मेरे पास बहुत सारा time था, इसलिए मैं आराम से खड़ा रहकर स्टेशन किनारे गर्म पकौड़े खाने लगा।

मैं - यार, धनिया की चटनी नहीं रखते हो?
पकौड़े वाला - भैया, आज कल तो tomato sauce में सब पच जाता है
मैं - है तो बताओ, philosophy मत बतिआओ
पकौड़े वाला - 10 रुपया देकर आप सोचेंगे कि हम चटनी भी दें और पकौड़े भी, तब फ़िलासफ़ी ही बतियाना पड़ता है।

- "भैया प्याज़ के पकौड़े होंगे क्या? tomato sauce में दे देना" ये तीसरी आवाज़ पीछे खड़ी लड़की ने लगायी। पलटकर देखा और देर तक देखते रह गया।

पकौड़े वाला - भैया ये लो धनिया चटनी, थोड़ी बची रह गयी थी
मैं - नहीं यार जो मज़ा tomato sauce के साथ पकौड़े खाने में है, वो धनिया के साथ नहीं है।

लड़की ने smile के साथ nod किया। उसकी सहमती देखकर मन किया कि पकौड़े वाले को टिप में 50 रुपया दे दूँ। खैर बनिया मित्रों की सलाह सुनने के बाद मैंने बहुत पहले टिप देना बंद कर दिया था।

बारिश कम नहीं हो रही थी। हम लोग गेट पर पकौड़े खा रहे थें। शाम का 4 बज रहा होगा। मेरे पास अभी बहुत time था। लड़की के हाथ में एक English नोवेल थी; Author जो भी रहा हो, तारीफ़ करना तो बनता था।

मैं - Literature Student?
लड़की - Yup
मैं - Which Author
लड़की - Vikram Seth
मैं - nice nice
लड़की - Just started the book. You like reading literature?
- मैं हाँ या ना बोलने की कशमकश में फंस गया। ना बोलने पर इज्ज़त कम हो जाती और हाँ बोलने पर झूठ पकड़ाने का डर था।
मैं - हाँ हाँ, I just love literature
- लड़की literature student थी और मैं अभी शब्दों के साथ engineering कर रहा था। लड़की ने मुझसे कोई cross question नहीं किया और मैं वापस कभी उस question पर नहीं आया।

जब आपका बहुत सारी बातें करने का मन हो, और दिमाग में कोई topic नहीं चमक रहा हो, तब फटाक से Education system पर गियर लगा दीजिये। दसवी-बारहवी पास किये हुए 7-8 साल हो गयें, पर आज भी 12th का syllabus संजीवनी बूटी की तरह आकर topic of discussion बन गया था। आधे घन्टे में हम दोनों ने पूरा syllabus revise कर लिया। हंसी के ठहाकों के बीच आलू,गोबी,प्याज़ के पकौड़े ख़त्म हो चुके थें। शारीर में ख़ून से ज्यादा tomato sauce बह रहा था और स्वाद था कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। आज मैं अपने उन सारे दोस्तों को call करना चाहता था जो कहते थें कि तुझमे random बंदी से बात करने का कलेजा नहीं है, और आज मैं उन सारे school teachers से मिलना चाहता था, जो पूछते रहते थें -"तुम्हे syllabus तो पता है या वहां भी गोल हो"

इश्क़ आपका DNA या behavior नहीं बदलता। जो चीज़ें पहले आपको बेवकूफी लगती थीं वो शायद मुहब्बत होने के बाद भी बेवकूफी ही लगेंगी, फ़र्क सिर्फ इतना पड़ता है कि आप जिनको चाहते हैं उनके लिए ऐसी बेवकूफियां कर बैठते हैं। यकीन मानिये - ये hypocrisy नहीं है। हम लोग देर तक escalator पर, platform पर, book store पर घूमते रहे। अभी तक मैं उसके सारे दोस्तों का नाम जान चूका था और वो मेरे सारे दोस्तों की कहानिया। देश के economics से लेकर दिल्ली की eating habit सब पर बातें हो चुकी थीं। सब कुछ selfless था।

बारिश थम चुकी थी। नयना के Dad का फ़ोन कॉल आया। वो 2 मिनट में पहुचने वाले थें। "इस बार मेरे पास बहुत time नहीं था"। अभी मेरे चेहरे की हसी भी नकली थी। यदि मैं इन्द्र होता, तब इस ज़ालिम बारिश को कभी रोकता ही नहीं।

मैं - Tomato Ketchup खाओगी
नयना - ना, धनिया चटनी ले आओ
मैं - हाहाहा
नयना - हाहाहा

नयना ने अपने बुक से Archies का book mark निकाला। उसपर "nice meeting you Raj लिखा", और चली गयी।

वो Book Mark आज भी मेरे रूम में महफूज़ टंगा हुआ है

courtesy : BHAK SALA

Tags: Fiction

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