जिन सामानों की अब किसी को ज़रूरत नहीं
मैं अब à¤à¥€ वो दà¥à¤•ान ले कर बैठा हूà¤
हर à¤à¤• चोट पे नठदिल बना लेते हैं
मैं अब तलक à¤à¤• निशाठलेकर बैठा हूà¤
हसरतें अब महलों की हो चली हैं
और मैं à¤à¤• टूटा हà¥à¤† मकान लेकर बैठा हूà¤
रोशिनी थी तो à¤à¤• ग़à¥à¤°à¥‚र à¤à¥€ रहा
बà¥à¤ गया चिराग़ अब धà¥à¤†à¤ लेकर बैठा हूà¤
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- RANJEET SONI