अँधेरे कोनों की
कब्र सी ठंडक में
पैर घुसाकर पड़े रहो
कोई नज़र तुमसे
कभी कुछ मांग सकती नहीं

काठ के सपनों को क्षितिज पर लटकाकर
खुश - ख्याली का आनद लो
वैसे भी मर चुके हो-

तुम मेरे भीतर से
मेरे कोमल मन ... amit

Tags: Poetry

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